Saturday, January 15, 2011

My friends...


मेरी दोस्त निधि यादव एक एसी लड़की है जो अपनी एक मुस्कुराहट से किसी को भी अपना दोस्त बना लेती है।
जो उससे एक बार किसी भी तरह की बात सच्चे दिल से बोलता है निधि उससे और भी अच्छे ढ़ंग और प्यार से बोलती है। मुझे लगता है कि वो एसी लड़की से दोस्ती करना चाहती है जो हमेशा सच बोलती हों, चुगली करने की जिसमे आदत ना हो- क्योंकि एसी लड़कियों से निधि सख्त नफरत करती है।

निधि बहुत ही खूबसूरत है, बहुत गोरी है अगर वो जरा भी देर धूप मे खड़ी हो जाए तो उसका चहरा इतना लाल हो जाता है कि जैसे किसी से पिटकर आई हो।
वो पढ़ने मे भी बहुत होशियार है- उसे अंग्रेज़ी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि वो पढ़-लिख कर कोई नौकरी करना चाहती है।
वो पढ़ने से बिल्कुल भी पीछे नही हटती  इसी वजह से मेरे स्कूल की कई लड़कियाँ और मेरी क्लास की कुछ लड़कियाँ उससे बहुत जलती है, उसके बारे मे आपस मे कुछ-कुछ बातें करती रहती हैं।

कभी-कभी हम सारी सहेलियों की उन लड़कियों से लड़ाई भी हो जाती है और जब मेडम को पता चलता है कि हमारी आपस मे लड़ाई हुई है तो मेडम हम लोगों को बहुत समझाती है कि  तुम पूरी क्लास की लड़कियाँ बहुत अच्छी हो फिर भी तुम लोग आपस मे लड़ते हो।

लड़ाई की एक खास वजह होती है, हमारी एक सहेली जिसका नाम रूचि शाक्य है वो गणित मे बहुत होशियार है लेकिन वो थोड़ी सी मोटी है। जिनसे हमारी लड़ाई होती है वो उसे मोटी-मोटी कहकर चिड़ाते हैं उसे देखकर हंसते हैं और फुस-फुसाते है। ये देखकर कभी-कभी बर्दाश्त नही होता और हम लोगों की लड़ाई हो जाती है।
रूचि बाद मे बहुत रोती है, हम लोग उसे बहुत समझाते है कि तू क्यों रो रही है- वो सब कहते हैं तो कहने दे। हम उसे थोड़ा हंसाने की कोशिश करते है और जब हंसी-हंसी मे हम उसे मोटी कहते हैं वो और ज़्यादा हंसती है तब हमे लगता है कि दोस्ती का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है जो हर रिश्ते से अलग होता है।
जब लंच होता है तो सब खाना खाते हैं लेकिन हम लंच से पहले ही खाना खा लेते हैं और लंच के ‌वक़्त खेलते हैं।

मुझे अपनी सहेलियों के साथ रहना बहुत ही अच्छा लगता है। जिस दिन क्लास मे मेरी कोई सहेली ना आई हो तो मुझे उस दिन क्लास की हर बात, पढ़ाई, खेल सब बेकार लगता है क्योंकि हम सब सहेलियाँ एक साथ आते हैं और एक साथ जाते हैं बिना उनके स्कूल का सफर बहुत बोर-बोर सा लगता है।

हम सब एक साथ रहकर बहुत खुश लगते हैं। और अगर एक दिन भी छुट्टी होती है तों हमे ये लगता है कि इतना बड़ा दिन हम अपने घर पर कैसे काटेंगे। और एसे मे मैं हमेशा यही सोचती और चाहती हूं कि मुझे मेरी सहेलियों का साथ हमेशा मिले क्योंकि दोस्ती को बचपने मे जीने का एक अलग ही मज़ा है जिसे हम बड़े होने के बाद भी नही भूलते।


nida.


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