Wednesday, November 24, 2010

हमारी गली


गली वो होती है जो कई घरों के बिच रास्ता बनाती है।
गली लम्बी हो या चौड़ी इससे फर्क नही पड़ता लेकिन गली अगर चौड़ी हो तो वो सड़क का रूप ले लेती है या लोग उसे गली कहते ही नही है। सड़क पर जो चहल-पहल होती है वो गलियों मे नही होती और जो रोनक गलियों मे की जा साकती है या होती है वो सड़क पर नही होती अकसर हम देखते हैं कि शादियों मे गलियों को ही सजाया जाता है क्योंकि सड़क के मुकाबले गली की जग-मगाहट देखने लायाक होती है।

गली का माहौल आस-पास से बनता है- सब घरों के बच्चे खेलते हैं, बाहर चबूतरों पर लड़के, लड़कियाँ, औरते बैठी रहती हैं अपने आज-कल की बातें करती हैं।
सड़क का माहौल दूरियों को समेट कर बनता है- अलग-अलग जगह के जाने-अनजाने लोगों से बनता है।

हमारी गली बहुत छोटी है कुल 6 घर हैं- 2 उलटे हाथ पर, 3 सीधे हाथ पर और एक बिलकुल सामने जिसके होने से गली बन्द हो गई है। बीच के बचे रास्ते को हम अपनी गली कहते है क्योंकि वहीं हम खेलते हैं, बाहर खड़े होते हैं और कहीं जाने के लिए भी वहीं इकट्ठा होते हैं।

हमारे घर के और सामने के घर के लोग अकसर अपनी-अपनी चौखट पर आकर बैठ जाते हैं और बातें करते हैं।
सड़क पर रातों को भी लोग चलते हुए दिख जाते हैं क्योंकि सड़क मंज़िल तक पहुचने का एक साधन है।
हमारी गली रात मे बिलकुल शांत हो जाती है कुत्ते भौंकते हैं लेकिन एसा लगता है जैसे उनके भौंकने से ही संन्नाटा और बड़ता जाता है। 


ज़मीर  

Tuesday, November 23, 2010

हमारा घर


हमारा घर पटियाली चौराहे के पास है, हमारे घर मे हम दो बहने, एक भाई है। एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो चुकी है और भईया की भी शादी हो चुकी है। हमारे घर मे हमारी भाभी भी साथ रहती है, मम्मी की तबियत आज-कल ठीक नही रहती इसलिए हम दोनों बहनें ही घर का सारा काम करती हैं और साथ-साथ पढ़ाई भी करते हैं।
जब हम स्कूल रहते हैं तो भाभी ही घर का काम देखती है, इस तरह मिल-बाट कर हम अपने घर को बनाए रखते हैं।
मम्मी हर काम मे हाथ बटाने को तैयार रहती है लेकिन हम उन्हें आराम करने को कहते रहते है। घर का सारा जिम्मा हमारे भईया पर है- हमारी पढ़ाई और घरेलू खर्च, अकसर भईया परेशान से दिखते है लेकिन वो काम करना नही छोड़ते, उनको हमेशा हमारी चिंता रहती है क्योंकि अब हम दोनों बहनें बड़ी हो चुकी हैं और हमारी शादी भी भईया को ही करनी है। 
हमारे पापा हमारे बचपन मे ही गुज़र गए थे, उस समय अकल नही थी तो इतना अफसोस नही हुआ लेकिन आज अफसोस होता है- काश पापा होते तो भईया पर इतना बोझ नही होता।
मैं आज ये सोचती हूँ कि भईया उस वक़्त ज़्यादा बड़े नही थे 15-16 साल के थे और पढ़ाई भी करते थे, तब हम कैसे गुज़ारा करते होंगे ?
मम्मी अकसर कहती है कि "मैंने अपने बच्चों को बड़ी मेहनत से पाला है" उनकी इस लाइन से मुझे मम्मी की उलझन और दिक्कत का अन्दाज़ा होता है कि वो पापा के बिना घर-परिवार को कैसे बनाए रखती होंगी ?
इसलिए मैं अपनी माँ से बहुत प्यार करती हूँ। भईया ने भी जब से होश सम्भाला है हमे खुश ही रखा है।

आज हम और हमारा घर सिर्फ हमारी मम्मी की बदोलत खुश और अच्छी व्यवस्था में है और मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि भगवान मुझे भी इतनी शक्ति दे कि मैं भी अपने जीवन मे कभी कमज़ोर न पड़ू।


रीता