Wednesday, January 26, 2011

पहचान

गली से गुज़रते वक़्त किन-किन चीज़ों को हम अपनी जगह की 
पहचान बना लेते हैं ?

: किसी का पुराना घर
: रोज़ाना एक ही जगह खड़ी हुई साईकल
: घर के पास बने मंदिर-मस्जिद
: चौखट या बैठक
: पर्चून की दुकान
: बेनर या पोस्टर
: कूड़े का ढ़ेर


घर की पहचान :- मेरे घर के सामने एक मस्जिद है और उसके पास ही मन्दिर भी है जिससे लोग हमारे घर की पहचान करते है। जब हम छोटे थे और घर से थोड़ी दूर निकल जाया करते थे तो हम अपने घर की पहचान अपने घर के सामने बनी मस्जिद से कराते थे जिसके बराबर मे ही एक मन्दिर भी है।

स्कूल की पहचान :- हमारे स्कूल की पहचान ये है कि जब मैं अपने स्कूल जाती हूँ तो मुझे रास्ते में एक मछली की दुकान से होकर गुज़रना पड़ता है जहाँ पर बहुत बदबू आती है, तब स्कूल बहुत पास लगता है, वहाँ आते ही हम अपने कदम तेज़ कर लेते है। और थोड़ी दूर चलते ही स्कूल के पास बने मन्दिर को देखकर हम समझ जाते हैं कि  अब हमारा स्कूल आ गया।



Group Discussion 

Sunday, January 16, 2011

कम्बख्त वक्त.


कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

शांत धरती को शौर-गुल मे बदल देता है।
काले बदलों को बरसात मे बदल देता है।
कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

किसी आदमी की शोहरत को बर्बादी मे बदल देता है।
ठीक-ठाक आदमी को बिमारी मे बदल देता है।
किसी की इमानदारी को बईमानी मे बदल देता है।
इंसान की वफादारी को गद्दारी में बदल देता है।
कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

हंसते हुए चहरे को मायूसी मे बदल देता है।
किसी की दोस्ती को दुश्मनागी मे बदल देता है।
खूबसुरत आँखों को आसुओं से भर देता है।
कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

गली-मौहल्लों को खोफनाक जगह मे बदल देता है।
तेज़ हवाओं को आंधी मे बदल देता है।
गर्मी के मौसम को सर्दी मे बदल देता है।
जीते-जागते इंसान को मौत मे बदल देता है।
कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

ये सिर्फ मैं नही कहता, इस जहां का कतरा-कतरा कहता है।
कि कम्बख्त वक्त नज़ारे को बदल देता है।

raajneet.

दांतों का जादूगर...



 एक सजा हुआ माहौल, घेरा बनाकर कुछ समझने और हा-हा, ही-ही के साथ एक दुसरे से वाकिफ होते हुए कुछ घुसते तो कुछ बाहर निकलते लोग।
पीपल की छांव और उसके नीचे का आंगन माहौल के बनने से पहले रच दिया गया है। एक महत्वपूर्ण मेसेज सुनाने के लिए महफिल की इस फुस-फुसाहट के बीच, लाउड स्पीकर पर चीखती आवाज़ें...
पोशाक का एक जैसा रंग होने की वजह से ये अनुमान लगाना आसान हो गया था कि वो 5 लोग हैं, संतरी रंग के कुरते और धोती, सर पर राजस्थानी पगड़ी और पेड के तने से बन्धा एक बड़ा लाउड स्पीकर।

हाथ में माइक लिये वो समझाने की विधी को एक बार फिर दोहराता हुआ बोला, सबकी आँखे उस आकर्षक माहौल मे खोई हुई थीं और कान अपनी ही फुस-फुसाहट में, क्योंकि घेरे के बीच सुनने-सुनाने के अलावा भी कुछ चल रहा था- जिसे लोग प्यार से कहते है मज़े लेना।
अपनी बात रखने के लिए हमेशा सुनने वालों की उम्मीद एक पक्की गाठ की तरह होती है और उसी उम्मीद को आकर्षक रूप से रखा गया माहौल के बीच।
अपनी बात कहने का मकसद था कि हम पर और हमारे चमत्कारी बाबा पर विशवास को करो।
हमारे चमत्कारी बाबा जिन्होने सालों जंगलों में बिताए, कई तरह की बिमारियों का हल निकाला, उन जड़ी-बूटियों को ढ़ूंढा जिससे कई प्रकार के रोग ठीक हो सकते हैं।
और हम यहां सिर्फ इसलिए ही आए हैं कि आम लोगों को भी इस दावा से लाभ हो। हमारे पास कई प्रकार की दवाएँ मिलती हैं लेकिन इस बार हम एक परेशानी से मुक्ती पाने का समाधान लाए हैं।
अब हम आपको एक जादू दिखाएंगे।

उनमें से एक आदमी उठा और कुर्ते की जेब से एक क्रीम का पाउच निकाला, दूसरी जेब से पजामे का एक सफेद नाड़ा निकाला, नाड़े को नीली स्याही में डुबोया- सबकी आँखों के पास से घुमाते-घुमाते उसने घेरे के हर एक नज़दीकी बन्दे को ये जताया कि ये सफेद नाड़ा अब नीला हो चुका है और बताया- हम सब जानते हैं कि टी.वी में इस क्रीम को लेकर किस-किस तहर के वादे किये जाते हैं, कहा जाता है कि "चहरे पर लगाओ रंगत पाओ"
अब हम इस क्रीम को इस नीले नाड़े पर लगाकर आजमाते हैं कि इस क्रीम के वादे कितने सच्चे हैं।
दोनों हाथों में मसली हुई क्रीम को बा-काएदा दिखाया गया और बताया गया कि अब देखते हैं कि ये कितनी असरदार है नाड़े को हाथों में लगी क्रीम के साथ मसला गया, अच्छी तरह से मसलने के बाद उस नाड़े को दिखाया गया - वो कहीं से नीला और कहीं से क्रीम कलर का हो चुका है।

उनमे से एक आदमी और उठा, शायद आगे समझाने का काम उसका है- तेश में आकर माइक हाथों से अपने हाथ में लेते हुए बोला - ये तो एक नाड़ा भी नही चमका सकती चमड़ी तो फिर भी चमड़ी है ( अपने चहरे की चमड़ी को पकड़ कर खींचते हुए, चहरे के भाव एसे जैसे कह रहा हो कि इस क्रीम पर तो हँसी आनी चाहिए )
अब हम दिखाते हैं आपको अपनी जड़ी-बूटियों का जादू।

कुर्ते की जेब से फिर एक बार सफेद नाड़ा निकाला गया, उसे भी नीली स्याही में डुबोया गया। पास बैठे अपने ही बुजुर्ग साथी के घुटने के नीचे दबी अटेची को खोला गया उसमें से एक छोटी शीशी निकाली, जिसमें सफेद रंग का पाउडर है। फिर एक बार नीले नाड़े की नुमाइश की गई और उसे भी मसला गया पर इस बार क्रीम में नही उस सफेद पाउडर में, मसलने के बाद इस बार नाड़ा हर तरह से सफेद हो चुका था, बिल्कुल सफेद।
ये है सच और झूट का खेल।
शायद ये खेल दिखाने वाला भी जानता होगा कि क्रीम और पाउडर में क्या फर्क होता है?
लेकिन इस वक्त फर्क माइने नही रखता क्योंकि ये जादू है और जादू में फर्क करना आपका काम है उसका काम है तो बस उस फर्क को छुपाना।

ये जादू दातों के जड़ी-बूटी पाउडर के सोजन्य से दिखाया जा रहा है। जिससे की दाँतों की चमक और मसूड़ो में जान बनी रहती ( पाइरियाँ से राहत )
वो यकीन दिला चुके है कि वादे कुछ नही होते, होती है तो बस हकीकत, जो इस वक्त आपकी आँखों के सामने है लेकिन दिखावे और हकीकत के बीच जिस पर्दे का सहारा लेकर वो खेल रहा है, शायद ही कोई उसे धोकेबाज़ कहे। क्योंकि वो तो जादूगर है- काले को सफेद बताकर यकीन दिलाना उसका काम है और समझना या ना समझना पब्लिक का काम है
जो उसे समझा उसने उसके हाथ में एक दांत साफ करने की बोतल पकड़ाई और 20 रूपये ले लिए जो उके जादू को समझा वो हँसके कट लिया उस माहौल से।


saifu.


Saturday, January 15, 2011

My friends...


मेरी दोस्त निधि यादव एक एसी लड़की है जो अपनी एक मुस्कुराहट से किसी को भी अपना दोस्त बना लेती है।
जो उससे एक बार किसी भी तरह की बात सच्चे दिल से बोलता है निधि उससे और भी अच्छे ढ़ंग और प्यार से बोलती है। मुझे लगता है कि वो एसी लड़की से दोस्ती करना चाहती है जो हमेशा सच बोलती हों, चुगली करने की जिसमे आदत ना हो- क्योंकि एसी लड़कियों से निधि सख्त नफरत करती है।

निधि बहुत ही खूबसूरत है, बहुत गोरी है अगर वो जरा भी देर धूप मे खड़ी हो जाए तो उसका चहरा इतना लाल हो जाता है कि जैसे किसी से पिटकर आई हो।
वो पढ़ने मे भी बहुत होशियार है- उसे अंग्रेज़ी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि वो पढ़-लिख कर कोई नौकरी करना चाहती है।
वो पढ़ने से बिल्कुल भी पीछे नही हटती  इसी वजह से मेरे स्कूल की कई लड़कियाँ और मेरी क्लास की कुछ लड़कियाँ उससे बहुत जलती है, उसके बारे मे आपस मे कुछ-कुछ बातें करती रहती हैं।

कभी-कभी हम सारी सहेलियों की उन लड़कियों से लड़ाई भी हो जाती है और जब मेडम को पता चलता है कि हमारी आपस मे लड़ाई हुई है तो मेडम हम लोगों को बहुत समझाती है कि  तुम पूरी क्लास की लड़कियाँ बहुत अच्छी हो फिर भी तुम लोग आपस मे लड़ते हो।

लड़ाई की एक खास वजह होती है, हमारी एक सहेली जिसका नाम रूचि शाक्य है वो गणित मे बहुत होशियार है लेकिन वो थोड़ी सी मोटी है। जिनसे हमारी लड़ाई होती है वो उसे मोटी-मोटी कहकर चिड़ाते हैं उसे देखकर हंसते हैं और फुस-फुसाते है। ये देखकर कभी-कभी बर्दाश्त नही होता और हम लोगों की लड़ाई हो जाती है।
रूचि बाद मे बहुत रोती है, हम लोग उसे बहुत समझाते है कि तू क्यों रो रही है- वो सब कहते हैं तो कहने दे। हम उसे थोड़ा हंसाने की कोशिश करते है और जब हंसी-हंसी मे हम उसे मोटी कहते हैं वो और ज़्यादा हंसती है तब हमे लगता है कि दोस्ती का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है जो हर रिश्ते से अलग होता है।
जब लंच होता है तो सब खाना खाते हैं लेकिन हम लंच से पहले ही खाना खा लेते हैं और लंच के ‌वक़्त खेलते हैं।

मुझे अपनी सहेलियों के साथ रहना बहुत ही अच्छा लगता है। जिस दिन क्लास मे मेरी कोई सहेली ना आई हो तो मुझे उस दिन क्लास की हर बात, पढ़ाई, खेल सब बेकार लगता है क्योंकि हम सब सहेलियाँ एक साथ आते हैं और एक साथ जाते हैं बिना उनके स्कूल का सफर बहुत बोर-बोर सा लगता है।

हम सब एक साथ रहकर बहुत खुश लगते हैं। और अगर एक दिन भी छुट्टी होती है तों हमे ये लगता है कि इतना बड़ा दिन हम अपने घर पर कैसे काटेंगे। और एसे मे मैं हमेशा यही सोचती और चाहती हूं कि मुझे मेरी सहेलियों का साथ हमेशा मिले क्योंकि दोस्ती को बचपने मे जीने का एक अलग ही मज़ा है जिसे हम बड़े होने के बाद भी नही भूलते।


nida.