Friday, August 20, 2010

जुम-जुम ज़ीना...

मैंने एक सपना देखा - जिस सपने में  मुझे एक ऐसा इंसान दिखाई दिया जो हमेशा लोगों को  देखकर जीता था.

मैं एक पार्क में  बैठकर अपने स्कूल का काम कर रही थी। तभी अचानक से एक आदमी उस पार्क में आकर बैठ गया, मैंने उस आदमी की तरफ देखा तो वो  धीरे धीरे उठकर मेरे पास आने लगा, फिर मैं उस जगह से उठकर दूसरी  जगह जाकर बैठ गई.  फिर वो  वहां  भी आने लगा और मैं ये देखकर घबरा गई। मैं ये सोचने लगी कि ये आदमी मेरे पास क्यों  आ रहा है ?

मैं वहां  से भी उठकर खड़ी हो गई और जब वो मेरे बहुत पास आ गया तो वो मुझे देखकर धीरे-धीरे हँसने लगा और अचानक से तेज़-तेज़ हँसने लगा और तभी में उसे देखकर रोने लगी। जब मैंने उससे पूछा कि तुम मुझे देखकर क्यू हँस रहे हो, तो इतना सुनते ही वो शान्त हो गया.

इस बार मैं और भी ज्यादा डरने लगी। मैं जितना उससे डर रही थी उतना ही वो मुझे घूरता जा रहा था। तब मैंने उससे पूछा कि तुम मुझे घूर क्यूँ  रहे हो ? तो वो तब भी चुप रहा, उसकी खामोशी से मेरे दिमाग में  तरह-तरह की  बातें  आने लगीं  कि कही वो मुझे मारेगा तो नहीं ?

वो और भी ज्यादा पास आने लगा, मैंने अपनी आँखें बन्द कर लीं  और मेरी चीख़ निकल गई, चीख निकलने के पीछे मेरा डर मुझे सता रहा था क्योंकि जब मैंने उसके पैर देखे तो वो ज़मीन पर नही था बल्कि वो ज़मीन से कुछ ऊपर था.

मैंने वहाँ  से भागना चाहा लेकिन उसने मुझे भागने नहीं  दिया, मैं रूक कर उसे देखने लगी उसने मुझसे ऊपर देखने को कहा, मैंने पहले अपने सवाल को जानना चाहा कि तुम मेरे पीछे क्यूँ पड़े हो? उसने कहा कि मुझे भूख लगी है।

मैंने उससे कहा कि ऐसा  मेरे पास क्या है जो तुम खाओगे?
उसने कहा कि "न ही मैं खाना खाता हू और न ही कुछ पीता हूं, मैं तो बस लोगों को देखकर जीता हूं"
जाओ अब तुम आज़ाद हो मेरा पेट भर गया और कहा कि इसलिए ही लोग मुझे ज़ुम-ज़ुम ज़ीना कहते हैं।
इतना कहकर वो वहाँ  से उड़ गया और तब से मैं उस पार्क में नही गई और न ही मुझे वो आदमी नज़र आया।



Nida

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